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Showing posts from December, 2022

भाई ....

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  गोवा की राजधानी पणजी से 13 किलोमीटर मापुसा नाम का एक कस्बा पड़ता है। यहाँ पर्रा नाम का एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव 2 चीज़ों के लिए जाना जाता है। एक है तरबूज और दूसरा है एक शख्स। आखिर वह कौन है, यह जानने के लिये आपको अंत तक चलना होगा। खैर, फिर लौटते हैं पर्रा की ओर जहाँ 60 और 70 के दशक में, जब यहाँ बम्बई जाना विदेश जाने के बराबर था। तब पर्रा की पहचान थी वहाँ का तरबूज़ मेला, जहाँ लोग मुफ्त में जितना चाहें उतना तरबूज खा सकते थे।  बस शर्त इतनी सी थी कि तरबूज़ को खाकर उसका बीज पास रखी हुई टोकरी में थूकना होता था। उन दिनों इस मेले में एक लड़का भी आया करता था।  कुछ समय बाद वह लड़का अपनी आगे की पढ़ाई के लिए बंबई चला गया। कुछ साल बाद जब वह वापस गोवा लौटा तो उसका ठिकाना मापुसा से बदलकर पणजी हो चुका था। एक दिन वह बाज़ार गया तो वह जानकर हैरान रह गया की अब बाज़ार में मापुसा के तरबूज नहीं मिलते।  फिर जब वह तरबूज की खोज में पर्रा पहुँचा तो उसने पाया की तरबूज मेला करवाने वाले ज़्यादातर किसान या तो अब किसानी अपने बेटों को सौंप चुके हैं या अब वह नहीं रहे।  जब कमान उनके बेटों के हाथ आई तो उन्होने तरबूज मेले में

बेताल छब्बीसी (भाग-2)

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 खदेडू की दुकान पर चाय-समोसे के साथ इलाके भर की खबरें, कंठ के नीचे पेट भर उतारने के बाद विक्रम-बेताल अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। अभी कुछ दूर चले ही थे कि सामने का दृश्य देखकर दोनों आतंकित हो उठे। सामने से हवलदार पटकन सिंह और हुडदंगी लाल अपनी तोंद छलकाते हुए चले आ रहे थे। हालाँकि उनके चेहरे पर मास्क चढ़ा हुआ था, लेकिन उनके डील-डौल और शारिरीक हाव भाव से उन्हें पहचानना किंचित मात्र भी कठिन नहीं था। दोनों अपने - अपने तंत्रसंचालक अर्थात डंडे, ज़मीन पर पीटते हुए काल की गति से आगे बढ़ रहे थे।  इन्हें देखते ही बेताल ने हड़बड़ी में मास्क पहनने लगा। वहीं पहले से ही मास्क धारण किए बैठे विक्रम ने भी मास्क को थोड़ा ऊपर चढ़ाया। इतने में चलते हुए दोनों हवलदारों के करीब आ गए। पटकन सिन्ह गरज़ते हुए मास्क के भीतर से ही बोले-  "सुने हो ना, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। केस कम हो गए इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना खतम हो गया। कोरोना अभी यहीं है और हम भी, ताकि कोई ढिलाई ना बरते। समझे की नहीं?"    कहते हुए पटकन सिंह और हुडदंगी लाल दोनों आगे बढ़ गए। चूँकि सोशल डिस्टेनसिंग की धज्जियाँ हर कोई उड़ा रहा था, ऐस