प्रिय कुर्सी......
लगभग 60-65 वर्ष की आयु का एक व्यक्ति बड़ी शान से चहलकदमी करते हुए आगे बढ़ता जा रहा है। उसके एक हाथ में 2 काले रंग की फ़ाईलें हैं और दूसरे में मोबाइल फ़ोन। बड़े ही भव्य गलियारे को पार करते हुए वह एक कमरे में प्रवेश करता है। दिखने में कमरा, गलियारे से भी भव्य था। विशाल आकार का सफ़ेद दीवारों वाला वह कमरा उजली रोशनी से नहाया हुआ था। कक्ष कीमती कलाकृतियों, चित्रों, भव्य सोफ़ा सेट,और एक विराट आकार के मेज़ से सुशोभित था। उस मेज़ कि दूसरी ओर एक सफ़ेद कुर्ता पजामा धारण किए हुए, एक 50-52 साल का चुस्त-दुरुस्त देह वाला व्यक्ति अपने फ़ोन पर कुछ टंकित करने में व्यस्त था। उस वृद्ध के कमरे में प्रवेश करते ही उस सफ़ेद कुर्ते-पजामे वाले व्यक्ति की एकाग्रता भंग हो जाती है। वृद्ध व्यक्ति को देखते ही वह अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और मुस्कुराते हुए कहता है- आइए सिन्हा जी, मैं सोच ही रहा था कि आप अब तक आए क्यों नहीं? (दोनों हाथ मिलाते हैं और सिन्हा जी मेज़ के इस पार लगी 2 कुर्सियों में से एक पर बैठ जाते हैं) सिन्हा जी- जी क्षमा करिए अभिनव बाबू । थोड़ी देर हो गई, असल में दयाल.... अभिनव- चलिए कोई बात नहीं। आप बता रहे थे