Posts

Showing posts from April, 2020

कई चेहरे हैं इस दिल के...

Image
ग़ालिबन 2005 का शुरुआती वक़्त रहा होगा। उन दिनों अपनी ज़िंदगी का तंबू कुल जमा 4 बंबूओं पर टिका हुआ था। क्रिकेट, वीडियो गेम, कार्टून और गाने। अमूमन पहले 3 शौक, रात के पहले पहर तक निपटा लिए जाते थे और आखिरी शौक के लिए रात का दूसरा पहर खुसूसी तौर पर छंटा हुआ होता था। चूँकि उन दिनों मोबाइल फ़ोन या आई- पॉड थे नहीं, ऐसे में गाने सुनने के ज़रिए कुल जमा 2-3 ही थे। टीवी, स्टीरियो, वॉकमैन या रेडिओ। मेरा पसंदीदा ज़रिया था टीवी, जिसके चालू होते ही उंगलियाँ तेज़ी से 72 नम्बर दबाती थीं। क्योंकि उन दिनों हमारे केबल नेट्वर्क पर MTV का यहीं ठिकाना हुआ करता था। हालाँकि यह सब सुनने में जितना आसान लगता है उतना था नहीं। उन दिनों टीवी रिमोट अपने पास रखने से ज़्यादा आसान फूटबाल के मैच में गेंद अपने पास रखना था। पर उस दिन अपना मुस्तकबिल पूरे शबाब पर था। चूँकि मम्मी- पापा किसी शादी में गए थे, इसलिए उस दिन घर में हुकूमत अपनी थी। घर पर रुकने का असल मकसद तो अगले दिन होने वाले इम्तिहान की तैयारी थी, पर उस बाबत आगे कुछ ना ही कहूँ तो बेहतर है। बहरहाल टीवी चलाकर, दीवार पर गेंद मारकर उसे कैच करने लगा। जब यह खिल
Image
देश की राजधानी में एक बहुत बड़े पत्रकार हैं, जो स्वयं को पत्रकारिता का स्वघोषित मानदंड मानते हैं जबकि उनके 'भक्तों' के दृष्टिकोण में वह वर्तमान समय में पत्रकारिता का प्रमाणपत्र बांटने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था हैं। कल रात यूट्यूब पर उन्हीं का एक पुराना 'प्राइम टाईम' चलचित्र देखते हुए अचानक मुझे एक पुराने कार्टून शो का स्मरण आया। शो जिसका नाम था 'Road Runner' और जिसका प्रसारण किसी समय में Cartoon Network पर हुआ करता था। मेरा विचार है की हममें से जो 90 के दशक के निर्मित मॉडल हैं, उनमें से कुछ लोग इस कार्यक्रम से ज़रुर परिचित होंगे। और जिन्हें स्मरण करने में कठिनाई हो रही है, उनके लिए यह पहेली इस यूट्यूब लिंक के माध्यम से थोड़ा सरल किए देते हैं - 👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 https://youtu.be/PkBu-mnXOAk पता नहीं क्यों अब जब भी इस Road Runner का उल्लेख भी होता है, तब-तब वह पत्रकार महोदय याद आते हैं। इस शो में Road Runner के पीछे दौड़ता हुआ Coyote मुझे निरंतर उन्हीं पत्रकार महोदय की झलक दिखती है। Coyote की भांति ही वह पत्रकार महोदय भी 2014 के बाद से निरंतर राष्ट्र के पोलिट

अतीत के पन्नों से...

Image
कई दफ़े कोई अफ़साना या कहानी लिखते वक़्त एक ऐसा नाज़ुक दौर भी आता है, जब एक कलमकार की कलम उसके इख्तियार (काबू) से बाहर हो जाती है। गैरों के मुतलिक तो यह बात यकीन से नहीं कह सकता पर मेरे बाबत यह हक़ीक़त, कयामत जितनी ही मुनासिब है। कलम की बेवफाई अमूमन एक ही चीज़ साथ लाती हैं और वह है ख़ला (शून्य)। ख़ला, जिसकी आमद होती है अचानक किसी किरदार या फलसफे के कहानी से जुदा हो जाने पर।  बहरहाल आज से करीब 22 बसंत पहले भी एक ऐसा ही इत्तेफ़ाक़ पेश आया था, जब मेरी ही तरह एक और कलमकार की भी कलम उसे दगा दे गई थी। हम दोनों के दर्मियां का फर्क महज़ इतना ही है की, मैं अपनी कलम से हम सभी के मुक़द्दर में आ चुकी कहानियाँ लिखता हूँ और वह अपनी कलम से हम सभी के मुक़द्दर में आने वाली कहानियाँ लिखता है। मेरी बात का मुताल्लिक उसी से है, जिसने आज से सदियों पहले अपनी कलम से इस कायनात की बुनियादों को सलाखा था और जिसका एहतराम हम परवरदिगार के   तख़ल्लुस से करते हैं। खालिस अददी लहज़े में बात करुँ तो वह 19 अप्रैल, 1998 का दिन था, जब परवरदिगार से उसके कलम की बगावत हमें एक गहरी खलिश दे गई।  दुनियावी मायनों में भले ही

जुनून - भाग -1

Image
2006 का साल बढ़ते - बढते नवंबर तक का सफ़र तय कर चुका था। ठंड धीरे-धीरे ही सही मगर दृढ़ता से अपने आगे कदम बढा रही थी। पर माहौल की सर्गर्मी ने ठंड की रफ्तार को थोड़ा थाम सा दिया था। भले ही औरों के लिए आतंकवाद, इराक़, अमेरिका, न्यूक्लियर डील, मनमोहन सिंह, सोनिया, लेफ्ट, और कांग्रेस बहस के मुद्दे हों पर सेंट जोसेफ स्कूल के मैदान में पालथी मारे बैठे उन 4 पंछियों के लिए यह सभी बातें बेमानी थीं। उन तोतों की जान तो उसी दिन खत्म हुए अंडर-13 के सिलेक्शन ट्रायल्स के नतीजों में कैद थी, जिसके नतीजों की मुनादी अगले दिन होनी थी। यह ट्रायल्स ही इस बात को तय करने वाले थे की अगले हफ्ते से शुरु होने वाले डेनिस शील्ड टूर्नामेंट में सेंट जोसेफ स्कूल की जर्सी पहनकर खेलना किस- किस के मुक़द्दर में आएगा? यूँ तो 15 में से 12 नाम लगभग पहले से ही तय थे पर वास्तविक द्वंद सिर्फ 3 नामों को लेकर था। इन 3 नामों को लेकर कोच विजय शर्मा के मन में भीषण ऊहापोह की स्थिति थी। एक तरफ तो उनका दिमाग कह रहा है की बचे हुए 3 स्थानों पर भविष्य को ध्यान में रखकर कनिष्ठ (junior) खिलाडियों को मौका दिया जाए क्योंकि अगले साल इस अंडर-

LOCKDOWN DIARIES

Image
आज जब मैं रामायण के सेतु निर्माण वाले भाग में प्रभु श्री राम और  गिलहरी वाला प्रसंग देख रहा था, तभी अचानक मेरे मन में कथा आई, जो कुछ दिन पूर्व ही मैने 'Alchemist' में पढ़ी थी। चूंकि यह कथा मुझे निजी स्तर पर काफी प्रेरक लगी इसलिए सोचा इसे आप सभी से साझा करना चाहिए।  बात आज से सैकडों वर्षों पहले सम्राट टाइबेरियस के समय की है, जब रोम में एक वयोवृद्ध व्यक्ति रहा करता था। उसके दो पुत्र भी थे। एक सैन्य अधिकारी था तो दूसरा कवि। अपने- अपने क्षेत्रों में दोंनों की ही कीर्ति बहुत उज्ज्वल थी।   एक रात्रि उस वृद्ध व्यक्ति को एक स्वप्न आया, जिसमें एक देवदूत ने उसे दर्शन दिए। स्वप्न में उस देवदूत ने बताया की निकट भविष्य में उसके दोनों पुत्रों में से एक के कहे हुए शब्द इतनी ख्याति प्राप्त करेंगे, की आने वाली कई पीढ़ियाँ उसे दोहराएंगी।  परंतु दुर्भाग्यवश कुछ समय पश्चात एक बालक के प्राण बचाने का प्रयत्न करते हुए उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई। चूँकि उस वृद्ध ने अपना पूरा जीवन बहुत ही धर्मपरायणता से व्यतीत किया था इसलिए उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई। वहाँ उसकी भेंट उसी देवदूत से

THE WHISTLEBLOWER

Image
अबसे कुछ देर पहले, इंटरनेट पर Dr. Li Wenliang की कहानी पढ़ते समय पता नहीं कब मेरा दिमाग Paulo Coelho के सुप्रसिद्ध उपन्यास 'Alchemist' के एक दृश्य में जा पहुँच, जहाँ कथा के नायक Santiago का सामना एक काले नक़ाबपोश से होता है, जब वह कबीले के सरदारों को लुटेरों के होने वाले संभावित आक्रमण के बारे में आगाह करके लौट रहा होता है। सामना होने पर वह नक़ाबपोश अपनी तलवार तेज़ी से सेंटिआगो के करीब ले जाकर कहता है-  तुम होते कौन हो अल्लाह की मर्ज़ी को बदलने वाले?' लड़का संभलते हुए कहता है- अल्लाह ने ही यह जहाँ बनाया, मुझे और तुम्हें बनाया। वह अल्लाह ही है जिसने इस कायनात को, उस दुश्मन की सेना को और परिंदों के उस झुंड को ज़िंदगी दी। यहाँ तक की मेरे यहाँ होने और उस आने वाले खतरे के संकेतों को पढ़ने के पीछे भी अल्लाह की मर्ज़ी हैं। नक़ाबपोश- लेकिन फिर भी क्या तुम अल्लाह की मर्ज़ी को बदल सकते हो? लड़का- नहीं, मैनें सिर्फ शत्रु की आती हुई सेना और संभावित युद्ध को देखा ना की युद्ध के परिणाम को। और शायद अल्लाह भी चाहता है की युद्ध का परिणाम हमारे पक्ष में हो, इसलिए उसने मुझे यह संकेत दिए। क