सच का पंचनामा
एक समय था जब सच, मात्र सच हुआ करता था। फिर जैसे-जैसे मानव बुद्धि का विकास हुआ, वैसे- वैसे सच की भी सदगति/दुर्गती होती चली गई। सबसे पहले तो मानव ने अपनी सुविधा अनुसार आरे से रेंतकर सच के 3 टुकड़े किए। जिसमें से पहला टुकडा निकला 'मेरा सच', दूसरा निकला 'तेरा सच' और वह 'असली वाला सच,' जिसका वर्चस्व कभी पूरी मानव जाति पर हुआ करता था, वह लुढ़ककर तीसरे पायदान पर पहुँच गया। खैर, सच की सदगति/ दुर्गति का क्रम यहीं नहीं रुका। फिर सच को किसी गद्दे की भान्ति सूत-सूतकर उसपर धार्मिक लबादा चढ़ाया गया। तो अब वस्तु स्थिति यह थी की सत्य कुल जमा 6-7 वैरायटीयों में उप्लब्ध हो चुका था। लेकिन संतुष्टी से मानव का बैर सदैव ही रहा है। फिर कुछ वक़्त बीता , तो मानव सच की उप्लब्ध वैरायटीयों से ऊबने लगा। बुद्धिजीवीयों ने सोचा की इससे पहले की लोग फिर वहीं 'असली वाला सच' माँगने लगें, उन्हें कोई नया शिगूफ़ा थमाया जाए। अतः तमाम मंत्रोच्चार के बाद टोपी से एक 'लेफ्ट वाला सच' निकाला गया। इसे कुछ लोगों ने तो हाथों हाथ लिया, मगर कुछ की इस नए झुनझुने से नहीं पटी। सो इसकी