यक्ष प्रश्न 2.0

 संसार को अब द्वापर से कलयुग में प्रवेश किए काफी समय बीत चुका था। मीमरों के प्रकोप से अब महाभारत की कथा भी अछूती नहीं रह गई थी। जो कार्य 90 के दशक में हरीश भिमानी जी ने 'समय' बनकर किया था, अब वहीं दायित्व मीमरों ने अपने सिर ले लिया था। पठन- पाठन को पहले ही नमस्कार कह चुकी इस पीढ़ी को अब महाभारत की कथा मीमर बांच रहे थे।


बहरहाल महाभारत काल से लगाए अब तक कदाचित ही ऐसी कोई चीज़ बची थी, जिसमें परिवर्तन ना आया हो। मानव जाति के इन क्रिया-कलापों को देख असली वाले समय ने अब कथा बांचना बंद कर दिया था। क्योंकि समय अपनी दृष्टी से जिन चीजों को देख रहा था, वह बोलने के योग्य थीं नहीं और जो बोलने योग्य थीं, उन्हें कोई गम्भीरता से लेता नहीं। अब जब लोग समय को ही गम्भीरता से नहीं ले रहे थे, तो भला उसकी बातें कहाँ ठहरतीं? अतः समय ने भी परिस्तिथियों से समझौता करते हुए अपनी वाणी को विराम देने का निर्णय ले लिया और महादेव के तीसरे नेत्र के खुलने की प्रतीक्षा करने लगा।

वहीं दूसरी ओर अगर कोई परिवर्तन की बयार से बचा हुआ था, तो वह थे यक्ष। यक्ष का वास अब भी उसी तालाब में था, जिसमें वह महाभारत काल में रहा करते थे। बावजूद इसके की मानवों ने अपने निष्काम कर्म के बल पर अब उस तालाब को साक्षात नर्क बना दिया था। कूड़े — करकट की शायद ही कोई किस्म थी, जो खोजने पर उस तालाब में नहीं मिलती। परंतु यह त्राहिमाम भी यक्ष का आत्मबल डिगा नहीं सका।

               




यक्ष अब भी इस बात की आशा धारण किए बैठे थे कि किसी मंगल घड़ी, कोई ना कोई तालाब पर पानी पीने अवश्य पधारेगा। परंतु यह प्रतीक्षा भी अब कई हज़ार वर्षों से भी अधिक लंबी हो चली थी। अपनी आशा के भरण-पोषण में अनवरत रूप से जुटे यक्ष, इस बात से अनभिज्ञ थे कि मनुष्य तो मनुष्य अब ऊँट भी बिस्लेरी का पानी पीने लगे हैं।

परंतु समय से बदले आचरण से सीख लेते हुए अन्त्तोगत्वा यक्ष ने भी अपने प्रिय तालाब से विदा होने का निर्णय कर ही लिया। इधर यक्ष अपने विचार को कोई धरातल दे पाते, उससे पहले उधर कोरोना ने विश्व भर को नमस्कार कह दिया। विवशतावश सभी को घर में दुबकना पड़ा। अतः हज़ारों वर्षों से पृथक वास (quarantine) में रह रहे यक्ष के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा। उन्हें भी कुछ और समय तालाब में काटने के लिए विवश होना पड़ा।

लेकिन मानव जाति की गतिविधियों का पहिया थमते ही यक्ष का आनंद मंगल हो गया। नर्क का पर्यायवाची बन चुका तालाब फिर से जीवित हो उठा। प्रदूषण का फंदा हटते ही तालाब फिर से श्वाष (साँस) लेने लगा। यक्ष के मन में आशा वाली लालटेन फिर से जल उठी। यक्ष को लगा अब मानवों ने संभवतः अपना पाठ सीख लिया है और उनका प्रिय तालाब, अब फिर से अपना महाभारत काल वाला गौरव प्राप्त कर लेगा। परंतु लॉकडाउन खुलते ही मानवों ने यक्ष की आशाओं पर सेनिटाइज़र फेर दिया। बड़ी कठिनाईयों से जीवित हुआ तालाब पुनः नर्कपुरम बन गया।


ऐसे में यक्ष के पास पलायन के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं रह गया। यक्ष ने भारी हृदय से तालाब को अंतिम प्रणाम किया और अपनी डगर पर चल पड़े। काफी समय वह स्थान-स्थान भटकते रहे किंतु निराशा के अतिरिक्त उनके हाथ कुछ और नहीं लगा। फिर एक दिन उनके भाग्य के सूर्य का उदय हो ही गया। यक्ष एक मकान के बगल से निकल रहे थे तभी भीतर से आई एक वाणी ने उनके चरणों के वेग को थाम दिया। तनिक सतर्क होकर यक्ष घर के भीतर से आ रही आवाज़ को सुनने की चेष्टा करने लगे।

थोड़ा ध्यान केंद्रित किया तो एक वाणी भीतर उतरने लगी। वाणी एक नवयुवक की थी, जो 4 अन्य युवकों को सम्बोधित करते हुए कह रहा था......


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