वे रहीम नर धन्य हैं....
भक्त रहीम अपने एक दोहे में कहते हैं- वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग| अर्थात वह लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है। कुछ ऐसा ही जीवन दादा जी का भी रहा। अपने लगभग 6 दशक के वृहद सामाजिक जीवन में उन्होंने सदैव निष्काम रूप से स्वयं को दूसरों के लिए उप्लब्ध रखा। चाहें विज्ञान के छात्र के रूप में अपने आर्थिक रूप से निर्बल सहपाठियों को अपने स्तर से प्रोत्साहन देना हो, चाहें शिक्षक के रूप में पिछड़े आँचल से आने वाले आभावग्रस्त छात्रों के लिए शिक्षण को सरल बनाना हो, चाहें स्थानीय राजनीति में निर्वाचित जनप्रतिनिधि की भूमिका में अपने कर्तव्यों का सम्यक रूप से निर्वहन करना हो या नागरिक के तौर पर अपने द्वार पर आए हुए सहायता के अभिलाषियों की यथासंभव सहायता करना हो। उन्होंने हर भूमिका में तटस्थ होकर अपने धर्म का पालन किया। चाहें व्यक्ति उनका परम हित विरोधी ही क्यों ना रहा हो, अगर वह द्वार पर किसी अभिलाषा के साथ आया ह...