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Showing posts from June, 2025

वे रहीम नर धन्य हैं....

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 भक्त रहीम अपने एक दोहे में कहते हैं- वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग| अर्थात वह लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है। कुछ ऐसा ही जीवन दादा जी का भी रहा। अपने लगभग 6 दशक के वृहद सामाजिक जीवन में उन्होंने सदैव निष्काम रूप से स्वयं को दूसरों के लिए उप्लब्ध रखा। चाहें विज्ञान के छात्र के रूप में अपने आर्थिक रूप से निर्बल सहपाठियों को अपने स्तर से प्रोत्साहन देना हो, चाहें शिक्षक के रूप में पिछड़े आँचल से आने वाले आभावग्रस्त छात्रों के लिए शिक्षण को सरल बनाना हो, चाहें स्थानीय राजनीति में निर्वाचित जनप्रतिनिधि की भूमिका में अपने कर्तव्यों का सम्यक रूप से निर्वहन करना हो या नागरिक के तौर पर अपने द्वार पर आए हुए सहायता के अभिलाषियों की यथासंभव सहायता करना हो। उन्होंने हर भूमिका में तटस्थ होकर अपने धर्म का पालन किया।   चाहें व्यक्ति उनका परम हित विरोधी ही क्यों ना रहा हो, अगर वह द्वार पर किसी अभिलाषा के साथ आया ह...

आविर्भाव....

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परिवार के वृद्ध की छत्रछाया, पीपल के छाँव जैसी होती है। बढ़ती आयु के साथ उसकी छाया, उसके गुण-कर्म और भी अधिक सघन हो जाते हैं। उसके समक्ष नतमस्तक होकर आप पर आई हुई साढ़े-साती भी कट जाती है। पर जब पीपल का वृक्ष अपनी आयु पूरी करके, जीवन चक्र से विरक्त होता है, तब वह अपनी छाँव में आसन्न छोटे पौधों और तिनकों को अनाथ छोड़ जाता है। धूप, बरसात, और आंधियों का सामना करते हुए, अपना अस्तित्व स्वयं बनाने के लिए। जैसे एक ना एक दिन यह क्षण हर पेड़-पौधे जीवन में आता है, वैसे ही यह क्षण हर मानव के जीवन में भी आता है। जब उसके ऊपर से उस वृद्धजन की छाया हट जाती है, जिसकी छाँव में उसके अस्तित्व को आकार मिला हो। आज मैं भी उसी भावनिक मझधार के बीच हूँ। अब भी इस बात को मानने में कठिनाई हो रही है कि जिनसे हमने जीवन को अपनी तय शर्तों पर जीना सीखा, स्वयं की इच्छाओं को सम्मान देना सीखा, सत्यनिष्ठाता की वास्तविक शक्ति की पहचान करावाने वाले और उसके साथ उपजने वाले हल्के से अभिमान को नियंत्रित रखने की सीख के साथ, हमें, 'The Art of Learning' की कला में पारंगत करने वाले दादा जी को गो-लोक की यात्रा पर गए लगभग दो साल ...