मारा- मारी (भाग -1)


बहुत अकड़ तोहरा में ?? अब देख कैसे तुझको तोड़ता हूं । जब तक तोडेगा नही, तब तक छोड़ेगा नही वाली फील लेकर रक्टू भैया उर्फ राकेश कुमार टंडन, ठाणे स्टेशन के बाहर अंगद की तरह अपने पाद जमाकर खड़े थे ( यहाँ पाद का मतलब पैर है ना की नितंब द्वारा छोड़ी जाने वाली प्राण घातक वायु ) । यह वैधानिक चेतावनी विशेषकर उन अर्धज्ञानीयों के लिए है जो आज के आज के इस 'अर्धसत्य मेव जयते' के युग में आलू का भालू बनाते देर नहीं लगाते । खैर स्टेशन के सामने की सडक से दन  - दनाती गाड़ियों और लोगों को रक्टू भाई कुछ ऐसे घूरे जा रहे थे, मानो जैसे कोई लुगाई अपनी सौत की बारात देख रही हो । पर हर सुख - दुख से अलग उनको उस मारा - मारी को चखने की ललक थी जिसके नाम की डींगें अक्सर उनका बम्बईया मित्र श्याम बिहारी हांकता था ।


तभी मारा- मारी के अनुपम स्वप्न में लीन रक्टू भईया को एक ज़ोर का धक्का लगता है और जैसे - तैसे खुद को संभालते हैं । तबीयत से गरियाने के उद्देश्य से, अपने वर्षों के अथक परिश्रम से तैयार की हई गालियों के शब्दकोश से माँ- बहन के सम्मान में अर्पित किए जाने वाले कुछ मधुर शब्द छाँटकर अभी पलटे ही थे, की पीछे से एक फटी बाँस सरीखी आवाज़ गूंजी। नज़ारा देखकर मुँह में आई गाली, दांतों में एक्लेयर्स वाली टॉफी की तरह चिपक कर रह गई । हतप्रभ खड़े राकेश भईया पर सामने खडी लड़की ने तपाक से प्रहार किया "ए, इक्डे काय तुझ्या आईच्या मुजरा चालेल्या काय ? चला साइडला पडून ज़ा। पता न्ही किदर - किदर आते है रे तुम लोग ?" नए शहर में अंजानी लड़की द्वारा हाँका जाना इनके लिए सीधा "लागल करेजवा पे तीर" वाला अनुभव था । एक तरफ किनारे सरक कर अपने मित्र श्याम बिहारी का इंतजार करने लगे । तभी एक खाली जगह देखकर वहाँ अपना बैग और होल्डाल जमा दिया और होल्डाल पर बैठने की चेष्टा करने लगे । बैठने की चेष्टा में, उनके पुष्ठ भाग में हल्का सा मीठा- मीठा दर्द होने लगा । एक ओर कुछ मिनट पहले उस बदतमीज़ लड़की द्वारा पिलाई हई बेइज्ज़ती की घूँट का स्वाद अभी दिमाग से उतरा नहीं था और वहीं दुसरी ओर नितंब (पुष्ठ भाग) में उठताा दर्द उनको एक अलग ही वैचारिक नाले में खींच रहा था ।  उसी नाले में बहते - बहते अपने अतीत में पहुँच गए ।


कभी अपने शहर के स्वघोषित रंगबाज़ रहे रक्टेशवर महाराज की आज हालत उस सिपाही जैसी हो गई, जिसने दुश्मन को ठिकाने लगाने के मंसूबे तो तमाम बांधे रखे हों , पर उस कम्बख्त सामने आते ही उसकी राइफल उससे बेवफाई कर जाए । हालांकि इन जनाब के लिए ज़लिल होना, वह भी किसी लड़की के हाथों कोई नई बात नहीं थी । इलाहबाद में हीमैन बनने के फेर में बीसियों इनका मानमर्दन हुआ था, कभी लड़की के हाथों तो कभी उसके घर वालों के हाथों लेकिन हौसले फिर भी अपनी बुलंदी पर रहा । एक दफा सिविल लाइन्स वाले विनायक PVR में देखने तो kapoor & Sons का 6 से 9 का शो गए थे । इंटरवल तक सब भला - चंगा था, तभी इनको दिखी एक लड़की ब्यूटीफुल और खड़े- खड़े हो गए रक्टू भईया चूल्ल। आखिरकार इतनी ज़िल्लत उठाने के बाद रक्टू भईया को अपनी Alia Bhatt मिल ही गई । अब भला पिक्चर में कहां मन लगने वाला था, व्याकुलता से शो खत्म होने का इंतज़ार करने लगे । शो खत्म होते ही भीड़ को चीरते हुए लपक कर अपनी हीरो स्प्लेंडर पर पहुंचे पर सन्न से उस रिक्शा के पीछे अपनी रामप्यारी भगा दिए जिसमें में लड़की सवार होकर अपने घर की ओर जा रही थी ।


जब रात को घर लौटे तो मारे गर्व के भावविभोर हुए जा रहे थे और घर में घुसते ही अपना ब्लूटूथ वाला स्पीकर उठाकर बाथरूम की ओर प्रस्थान किया । स्पीकर और फ़ोन बाथरूम वाली खिड़की के सहारे टिकाकर "ओ मम्मी - मम्मी, ओ डैडी -डैडी, हो जाओ रेडी। आज मैने वो लड़की ढूंढ ली है" गाना बजा दिया और शॉवर चलाकर अफलातून ढंग से नाचे। नाचकर जब अघा गाए तो बिस्तर पर पड़ गए । अब टंडन जी के सुपुत्र को अब सच्चा वाला प्यार हो चुका था, सच्चा वाला मतलब फुल ऐण्ड फाइनल वाला । लड़की का घर तो पता लगा ही लिया था इसके बाद का काम आसान हो गया लड़की का आगा - पीछा पता लगाने में ज़्यादा दिक्कत पेश नही आई । इस बार बाबू साहेब श्रेया के लिए इतने दीवाने हुए की उस चक्कर में अपना हिस्से का दारु - चिकन कुर्बान करके बचाए 12,000 रुपय भरकर CA की उसी कोचिंग तक में ऐडमिशन तक ले लिया जहाँ श्रेया पढ़ती थी, जबकी ज़ालिम दुनिया वालों की नज़र में वह बीएससी केमेस्ट्री के छात्र थे ।


सब कुछ उनके प्लान के हिसाब से चल रहा था और महाराज हौले - हौले प्रेम रस का रसास्वादन कर रहे थे । अपनी बुलबुल के साथ अपना एक न्यारा सा घोंसला बसाने सपना संजो ही रहे थे की, तभी किसी गिद्ध की नज़र रक्टू भईया के खयाली घोंसले पर पड़ गई जिसका लाइव टेलीकास्ट उसने कोचिंग वाले रवींद्र सर को कर दिया । लाइव टेलीकास्ट के बाद दिखाया जाता है हाईलाईट, जो रवींद्र सर ने श्रेया के घर वालो को दिखाया । मगर लेकिन श्रेया के घर वाले भी यद्ध - शास्त्र के नियमों में भली भांति निपुण थे इसलिए प्रत्यक्ष रुप में धावा बोलने से बेहतर उनको गोरिल्ला नीति का प्रयोग लगा । प्लान को फुलप्रूफ बनाने के लिए श्रेया की दोस्त गरिमा को साम - दाम - दंड - भेद लगाकर अपने साथ मिलाया गया । गरिमा का काम मुखबिर का था जो की श्रेया के हर एक हलचल की जानकारी देती थी । घर वाले सही मौके की तलाश में थे और वह मौका मिला जब गरिमा ने बताया की 17 तारीख़ को शाम को श्रेया और राकेश इलाहाबाद के विश्व प्रसिद्ध चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में मिलेंगे। इत्तला पाते ही श्रेया के घर वाले अपने भावी दामाद की आवभगत की तैयारियों में जुट गए । दामाद जी के आवभगत के लिए झूंसी से खास तौर पर श्रेया के ममेरे भाई मंटू जी और संटू जी बुलाए गए ।



17 की शाम आ चुकी थी । रक्टू भईया भी तैयार थे अपनी मुमताज़ से मिलने को । 380 रुपय वाली फ़ेसवॉश से अपना मुँह धोकर अपनी वहीं नीली शर्ट निकाली जो प्रतीक के मुंडन में चाची ने दिया था । मोटरसाइकिल पर सवार रक्टू भईया ख्यालों में अपनी मुमताज के लिए हवाई ताजमहल बना रहे थे और आहिस्ता - आहिस्ता विपत्ति की तरफ बढ़ रहे थे, इस बात से बेखबर की उनकी मुमताज़ के घर वाले उन्ही ही कब्र खोदने के लिए उनकी बाट जोह रहे हैं । विचार शृंखला में बाधा तब पड़ी जब रक्टू भाई को ध्यान आया की उनका गंतव्य आ चुका है, बाइक खड़ी कर पार्क के अन्दर पहुँच कर अपनी लैला को खोजने लगे । उधर उनकी लैला के घर वाले भी अपने प्रिय दामाद जी के स्वागत के लिए पधार चुके थे, विशेष कर श्रेया के बन्धु गण, जो विचित्र मुद्रा बनाए हाथों में बेल्ट, स्टंप और बैट से सुसज्जित अपने तथाकथित जीजा जी को सलामी देने के लिए चौकन्ने खड़े थे । किसी चंट कौवे की भांति, रक्टू जी ने अपनी गर्दन इधर - उधर फिराकर श्रेया को खोजने लगे । श्रेया पर नज़र पड़ते ही उसकी तरफ लपके और लगभग उड़ने की रफ्तार से श्रेया के नज़दीक जा पहुँचे ।



अभी इससे पहले की इन दोनों के मुँह से कोई लफ्ज़ फुटता आस - पास ही घात लगा कर बैठी गुरिल्ला पलटन ने धावा बोल दिया । चूँकि राकेश बाबू श्रेया के घर वालों को चेहरे से पहचानते तो थे ही क्योंकि ना जाने कितनी ही बार श्रेया ने उनकी फोटोएं दिखा - दिखाकर उनके दिमाग में घरवालों के चेहरे छाप दिए थे , इसलिए जब उन पर छापामार कार्यवाही हई तो आते हुए तूफान को भांपते देर ना लगी । एक बार तो रक्टू दादा ने सोचा की 20 कदम दूर पर खड़ी दिवार फांद कर नौ दो ग्यारह हो जाएँ पर अगले ही क्षण उन्हे अपनी वो श्रेया को कभी ना मुसीबत छोड़कर भागने वाली भीष्म प्रतिज्ञा याद आ गई जो उन्होने को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी नेतराम की कचौडी और सब्ज़ी को साक्षी मान कर दी थी । इसी अंतर द्वंद में घिरे राकेश कुमार को अपनी ओर तूफान को आते श्रेया के घर वाले कालकेय की सेना के समान प्रतीत हो रहे थे । इस उधेड़ - बुन के खत्म होने का एहसास रक्टू भईया को तब हुआ जब उनपर एक ज़ोरदार मुक्का पड़ा और उन्होंने खुद के ज़मीन पर चरों खाने चित्त होकर गिरा हुआ पाया। अभी मान्यवर उठकर खड़े ही हुए और इससे पहले की कुछ बोल या कर पाते तभी किसी ने उनको अपनी कांख में ठीक उसी तरह चांत लिया जैसे बाली ने कभी रावण को कभी चांता था और उनके पश्चात उनके पुष्ठ भाग पर किसी सख्त चीज़ से दे दना - दन प्रहार होने लगे ।


इधर रक्टू भाईया के पृष्ठ भाग को तोडकर खण्ड - खण्ड करने की प्रक्रिया जारी थी उधर श्रेया पर उनकी माता जी श्रेया को थप्पड़ों से नहलाते हुए उसको ना - ना प्रकार के श्राप दे रहीं थीं। सुताई के दौरान रक्टू भईया भी लगातार "भाईया हम सिर्फ फ्रेंड्स हैं" और "भाईया गलती हो गई, अब कभी भी नहीं मिलूंगा श्रेया से। बस इस बार छोड़ दीजिए, आगे से ऐसा गलती नहीं होगा" की रट लगाए निरंतर दया याचिका दायर किए जा रहे जो बार - बार श्रेया के भाई ख़ारिज कर रहे थे । वहीं बजाए बीच - बचाव करने के, पार्क में आस - पास जमा होकर जनता - जनार्दन रसिक बनकर पूरे उपक्रम का भरपूर आनंद ले रही थी । हालांकि प्रहार रक्टू भाई के गुदा भाग पर हो रहा था, पर दर्द दिल में उठ रहा था । खुद से बार - बार कह रहे थे - अबै यार, मारना ही था तो हाथ - पैर तोड़ लेते, सर फोड़ लेते पर साला पिछवाडे पे ही काहें पेल रहे हो बे ?




रक्टू की मिन्नतों से उकता कर मन्नू भाई (जिन्होने रक्टू को चांत रखा था) मंटू और संटू (जो कसाई की तरह सुत रहे थे) से बोल पड़े- ए मंटू और संटू रुको रुको रुको ! और राकेश बाबू को शर्ट की कॉलर से पकड़कर उपर उठाया और बोले - अच्छा ! चलो अपने पे घर फ़ोन लगाओ और अपने बाप को ईहाँ बुलाओ । चल फटाफट लगाओ रे। तुम लोगों की हार्डवेयर की दुकान है ना बे ? श्रेया के भाई का समान्य ज्ञान देखकर रक्टू अवाक रह गया और ना चाहते हुए भी बोल पड़ा- भईया आपको कईसे पता ? चेहरे पर शैतानी मुस्कान बिखेरे मन्नु ने जवाब दिया - हमको लपरझंगु समझे हो का ? साला तुम्हरे पुरे खानदान का खसरा - खाता निकाल कर बईठे हैं ईहाँ ।" तूफान के बढ़ते स्तर को भांपकर रक्टू लगभग दंडवत होते हुए बोला - अरे भईया जाने दीजिए ना प्लीज । अब दोबारा कभी आपकी बहन की तरफ देखेंगे भी नहीं । पापा को काहें बीच में डाल रहे हैं ? चाहें तो हमही को 10 -20 लप्पड़ अउर पेल लीजिए ! दाँत पीसते हुए मन्नु बोला - अईसा है मुन्ना या तो अपने बाबूजी को फोन लगाओ या तुम्हरी इन लहराती जुल्फें के सहारे तुमको घसीटते हुए लक्षमन मार्किट ले चलें । आखिरकार हार कर रक्टू ने भी हथियार डाल दिया, बस अगर किसी चीज़ की कमी रह गई थी तो वह थी जेब में पड़ा सफेद रुमाल निकालकर हवा में लहराने की । रक्टू बोला - "भईया पहले आप कॉलर तो छोडिए ! अभी लगाता हूं"। इधर रक्टू अपना फ़ोन निकालकर उसके साथ कुछ करने लगा तभी श्रेया की मम्मी ने मन्नु से कहने लगीं- "ऐ मन्नु हम इसको लेकर रिक्शा से घर निकलते हैं, तुम लोग आ जाना मामला निपटा के और बात कुछ बढ़ा लगे तो अपने मझिला चाचा को फोन कर लेना ! ठीक है ना ?।" श्रेया के भाईयों का ध्यान भी श्रेया और उसकी मम्मी की ओर हो लिया । श्रीमान राकेश कुमार टंडन भी मौका ताड़ चुके थे, "गुरु अब इंहा से सरपट सरक लेओ, नही अब संगम में प्रवाहित कर दिए जाओगे ।" खुद को हांकते हुए पास की दीवार की ओर भागे और फांदने लगे



बाकी खेला अगले भाग में..............

Comments

  1. Wa re tendon Bhai kya tere maan me smai kahe ko ladki ptai badle me padi pitai

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  2. रक्टू भाई बड़े भले, दुम उठाकर मुंबई भगे 😂😂😂

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