जुनून - भाग -1




2006 का साल बढ़ते - बढते नवंबर तक का सफ़र तय कर चुका था। ठंड धीरे-धीरे ही सही मगर दृढ़ता से अपने आगे कदम बढा रही थी। पर माहौल की सर्गर्मी ने ठंड की रफ्तार को थोड़ा थाम सा दिया था। भले ही औरों के लिए आतंकवाद, इराक़, अमेरिका, न्यूक्लियर डील, मनमोहन सिंह, सोनिया, लेफ्ट, और कांग्रेस बहस के मुद्दे हों पर सेंट जोसेफ स्कूल के मैदान में पालथी मारे बैठे उन 4 पंछियों के लिए यह सभी बातें बेमानी थीं। उन तोतों की जान तो उसी दिन खत्म हुए अंडर-13 के सिलेक्शन ट्रायल्स के नतीजों में कैद थी, जिसके नतीजों की मुनादी अगले दिन होनी थी। यह ट्रायल्स ही इस बात को तय करने वाले थे की अगले हफ्ते से शुरु होने वाले डेनिस शील्ड टूर्नामेंट में सेंट जोसेफ स्कूल की जर्सी पहनकर खेलना किस- किस के मुक़द्दर में आएगा?

यूँ तो 15 में से 12 नाम लगभग पहले से ही तय थे पर वास्तविक द्वंद सिर्फ 3 नामों को लेकर था। इन 3 नामों को लेकर कोच विजय शर्मा के मन में भीषण ऊहापोह की स्थिति थी। एक तरफ तो उनका दिमाग कह रहा है की बचे हुए 3 स्थानों पर भविष्य को ध्यान में रखकर कनिष्ठ (junior) खिलाडियों को मौका दिया जाए क्योंकि अगले साल इस अंडर- 13 टीम के ज़्यादातर खिलाड़ी अंडर-17 वाले वर्ग में चले जाएँगे। पर इस तर्क के आड़े आ रहा था उनका दिल, जो इस बात पर अड़ा था की इस मौके के सही हक़दार, अगले साल रुखसत होने वाले अंडर-13 के वह खिलाड़ी हैं, जो अच्छा खेल दिखाने के बावजूद पिछले 2-3 सीज़नों से ड्रिंक्स की बोतलें लेकर दौड़ लगा रहे थे।

बहरहाल घास पर डेरा जमाए उन 4 पंछियों में से एक निखिल अखबार के पन्ने पलटते हुए मनन से कहता है- अरे यार, अब क्या ऐसे रोने वाली शकल बनाकर पड़े रहने से तेरे को सिलेक्शन मिलेगा क्या? अभी छोड़ ना, जो हो गया वो हो गया!

अपने किट बैग के ऊपर सिर टिकाकर लेटा मनन कुछ देर खामोश रहने के बाद बुझी हुई आवाज़ में कहता है - क्या छोड़ ना? मै कितने टाईम से फ्लिक शॉट की प्रेक्टिस पर रहा था, पर यार कैसा समझ नहीं आ रहा ट्रायल के टाईम कैसे मिस कर दिया?

अखबार में खेल वाले पन्ने को निहारने में मशगूल निखिल, मनन की बात को लगभग अनसुना करते हुए कहता है- अरे वो छोड़, ये देख धोनी का Rbk वाला बैट"

मैदान की घास उखाड़ने में व्यस्त नवनीत की नज़रें अचानक निखिल की ओर घूम जाती हैं। नज़रें मिलते ही निखिल पेपर नवनीत की ओर सरका देता है। अखबार देखते ही नवनीत की आँखें, अचंभे से बड़ी हो जातीं हैं।

नवनीत- ए हाँ रे, सही बोला। कितना मस्त बैट है। कम से कम 5000 का तो होएगा ही। मस्त मोटा बैट है। इससे तो मैं खड़े- खड़े शॉट मारेगा।

नवनीत की बातें सुनकर इन सभी से अलग बैठा मानव भी बीच में कूद पड़ता है। अपनी स्पाईक्स में फंसी मिट्टी साफ़ करते हुए मानव कहता है- चल - चल, 5000 के नीचे का तो यह जूते नहीं पहनते, इनका बैट 15-20 से कम का नही होएगा। और क्या धोनी का बैट?
इससे तो पठान, गंभीर, रैना सारे खेलते है।


नवनीत- अरे हाँ ठीक है, बट स्टार्ट तो धोनी ने करा था ना इससे खेलना!

मानव (तेज़ आवाज़ में)- तो क्या उसका हो गया यह बैट?

काफी देर से खामोश पड़ा मनन झल्ला उठता है- अरे बस करो ना यार। यहाँ सिर में दर्द है और ऊपर से तुम लोग का मच-म....

निखिल- हाँ तो हम लोग पर काहे को भड़क रहा है? पानी पी और सो जा।

मानव- अरे भाई तेरा ट्रायल तो मस्त हुआ ना, फिर काहे का टेंशन?

नवनीत- मस्त?

मानव- और क्या? भाई ने क्या मस्त कवर ड्राइव और स्ट्रेट ड्राइव रख के दिया अरुण को। अभिषेक भी ताली मार रहा था इसके शॉट देखकर।

मनन- अरे पर अभिषेक के ताली बजाने से क्या होता है? सिलेक्ट तो शर्मा सर ही करेगा।

मानव- पर अभिषेक भी तो कैप्टन है ना? उसका भी तो इम्पोर्टेन्स है ! और वैसे भी अभिषेक भी तो 2 बार बोल्ड हुआ था।

मनन- हाँ पर खेलेगा कौन यह तो शर्मा सर ही डिसाइड करता है ना बेचारा अभिषेक क्या करेगा? और भाई, अभिषेक टीम का मेन प्लेयर है और कैप्टन भी। उसको क्यों नहीं सिलेक्ट करेगा शर्मा सर?

इस बीच अपने बैग को कंधे पर टांगते हुए निखिल उठने लगता है। निखिल को जाता देख, मनन कहता है- अरे भाई कहां?

निखिल- घर।

मनन- पर अभी तो बोहत टाईम है। बैठ ना!

निखिल- अरे नहीं रे, घर जाकर जॉग्रॉफी का नोटबुक कम्पलीट करने का है नही तो मम्मी मैच नहीं देखने देगी।

मनन- कौन सा India- South Africa का?

निखिल- हाँ!

नवनीत- अरे छोड ना, वैसा भी हारने ही वाले है आज भी।

मनन- पगल है क्या? ऐसा कैसा हारेंगे?

नवनीत- जैसा champions Trophy में हारे थे।

मानव (चाभी भरने के अंदाज़ में)- सही बोला रे!

मनन- अरे वो तो एक में टूर्नामेंट हार गए, इतना तो चलता है!

नवनीत- एक टूर्नामेंट? ए भाई, Champions Trophy के पहले का भी तो बोल ना, वो मलेशिया वाला सीरीज़ में हारे थे, फिर उससे पहले  वेस्ट इंडीज, वो कौन बोलेगा?

मनन- अच्छा! फिर पीछे का देख रहा है तो वो भी देख ना, जब पाकिस्तान को हराया, उससे पहले साउथ अफ्रीका को हराया और उससे भी पहले श्रीलंका को हराया था?

नवनीत (खींझते हुए)- अरे ठीक है, ठीक है। और वैसे भी साउथ अफ्रीका से सीरीज़ ड्राॅ करा था, जीते नहीं थे।

मनन- हाँ पर हारे भी तो नहीं।

इतना कहकर जैसा ही मनन पीछे मुड़ता है तो निखिल को गायब पाता है। निखिल को अपनी जगह नदारद पाकर मनन मानव से कहता है- ये निखिल कहाँ गया?

मानव- भाई वो चला गया?

मनन- चला गया? कब?

मानव- अरे जभी तुम लोग को मच-मच चल रहा था तभी।

मनन- अच्छा!


इतना कहकर मनन भी अपना किट बैग उठाकर स्टैंड में खड़ी अपनी साइकिल की ओर चल देता है। मनन के पीछे-पीछे ही नवनीत और मानव भी मैदान छोड देते हैं। दरसल उस दौर में सिर्फ मानव या नवनीत ही नहीं बल्कि देश में क्रिकेट प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग आहिस्ता- आहिस्ता भारतीय टीम से विमुख होता जा रहा था। भारत की हार का जो सिलसिला वेस्ट इंडीज दौरे से शुरु हुआ था, वह अब भी बदस्तूर जारी था। सड़क से लगाए संसद तक हर कोई कप्तान राहुल द्रविड़ और कोच ग्रेग चैपल पर लानतें बरसा रहा था।


यहीं वजह थी की अब जब भारतीय क्रिकेट टीम दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर थी, तो इस दौरे को लेकर प्रशंसक कोई खास उत्साह नहीं दिखा रहे थे। इस बार भी सभी को लग रहा है की ग्रेग चैपल के निरंतर प्रयोग फिर औंधे मुँह गिरेंगे। वहीं यह सब देखकर दादा के फैन्स मन ही मन फूले नहीं समा रहे थे। उन्हें अब भी इस बात की उम्मीद थी की बतौर कप्तान अगर राहुल द्रविड़ इस दौरे पर भी नाकाम हुए तो दादा फिर से वापसी कर लेंगे। और क्या पता 2007 का विश्वकप आते-आते फिर से कप्तान ही बन जाएँ?

पर इन सब के बीच कुछ मनन सरीखे लोग भी थे, जो कहीं.......

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