अतीत के पन्नों से...

कई दफ़े कोई अफ़साना या कहानी लिखते वक़्त एक ऐसा नाज़ुक दौर भी आता है, जब एक कलमकार की कलम उसके इख्तियार (काबू) से बाहर हो जाती है। गैरों के मुतलिक तो यह बात यकीन से नहीं कह सकता पर मेरे बाबत यह हक़ीक़त, कयामत जितनी ही मुनासिब है। कलम की बेवफाई अमूमन एक ही चीज़ साथ लाती हैं और वह है ख़ला (शून्य)। ख़ला, जिसकी आमद होती है अचानक किसी किरदार या फलसफे के कहानी से जुदा हो जाने पर। 

बहरहाल आज से करीब 22 बसंत पहले भी एक ऐसा ही इत्तेफ़ाक़ पेश आया था, जब मेरी ही तरह एक और कलमकार की भी कलम उसे दगा दे गई थी। हम दोनों के दर्मियां का फर्क महज़ इतना ही है की, मैं अपनी कलम से हम सभी के मुक़द्दर में आ चुकी कहानियाँ लिखता हूँ और वह अपनी कलम से हम सभी के मुक़द्दर में आने वाली कहानियाँ लिखता है। मेरी बात का मुताल्लिक उसी से है, जिसने आज से सदियों पहले अपनी कलम से इस कायनात की बुनियादों को सलाखा था और जिसका एहतराम हम परवरदिगार के 
 तख़ल्लुस से करते हैं। खालिस अददी लहज़े में बात करुँ तो वह 19 अप्रैल, 1998 का दिन था, जब परवरदिगार से उसके कलम की बगावत हमें एक गहरी खलिश दे गई। 




दुनियावी मायनों में भले ही उस दिन सड़क हादसे में एक जाने-माने शख्स का इंतकाल भर हुआ हो, पर यह इंतकाल महज़ किसी शख्स का नहीं बल्कि बेशुमार ख्वाबों का भी था। वह ख्वाब जो दशकों पहले एक नौजवान ने अपनी एक छोटी सी दुकान की बुनियाद रखते वक़्त देखे थे। उन्हीं ख्वाबों को आगे चलकर  उस नौजवान ने कभी किसान डिग्री कॉलेज, तो कभी संस्कृत पाठशाला, गौशाला, टेलीफोन सेवा और बिजली घर की शक्ल देकर हक़ीक़त बनाया। इसलिए 19 अप्रैल के उस चौथे पहर जब परवरदिगार की कलम ने उसने रुसवाई की, तो किसी ने अपना पिता खोया, तो किसी ने अपना भाई। पर मैने अपने नाना जी को खोया, जो बस कुछ ही देर में लौटने के वादे के साथ मुझे छोड़े गए थे। इस बात से बेखबर की अब मुक़द्दर लिखने वाले का भी इख्तियार उसकी कलम पर नहीं रहा। 

आज जब वक़्त का यह काफ़िला, अप्रैल के इस 18वें अन्धेरे से निकलकर 19वें उजाले की दहलीज़ पर कदम रख रहा है, तो नज़रें मुसलसल इस हल्के सियाह, फलक को निहार रही हैं। उस खुदा की तलाश में, जिसका क़याम (ठिकाना) कहीं इन अब्रों के दरमियाँ ही है। पर किसी गिले-शिकवे के मक़सद से नहीं, बस एक जवाब की इल्तिजा लिए। वहीं जवाब, जो बाज़ौकात हम इस सवाल से रुबरू होने पर देते हैं- आखिर तुमसे ऐसा कैसे हो सकता है? 

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