अतीत का दरवाज़ा by प्रत्यक्ष
सूरज से लड़कर लौट आता हूँ घर,
अब नंगे पाँव चलने से छाले नहीं पड़ते।
सच में, दर्द अब थोड़ा कम होता है,
भूख और प्यास से निवाले नहीं लड़ते।
गाँव की पहचान भूल चुका हूँ कब का,
गली कूचो में पूरे दिन भटकता रहता हूँ।
बंद कमरे में सीलन की चादर ओढे,
तारे-सा अंधेरे में सिमटता रहता हूँ ।
अलमारी के किवाड़ कभी-कभी खुलते ही नहीं,
रोशनदान ने भी खुलने से अब मना कर दिया है।
मकड़ियों के जाले उँगलियों में यूँ ही उलझ जाते हैं,
दीवार की रंगत ने ख़ुद को फ़ना कर दिया है।
किताबों के पन्ने दीमक रोज़ कुतर रहे है,
लम्बी पड़ी मेज़ पर कोई चश्मे दिखते नहीं।
किताबें अपनी ही कहानियों को खा रहे है,
अब ये गाँव के किसी दुकान पर बिकते नहीं।
वह बंद पड़ा टीवी शायद चल जाए ठोक पीट कर,
पहले की तरह वह आज भी कमरे का उजाला है।
आँखों में कितने ही ख़्वाहिशों के रंग छन जाते हो,
लोगों की तरह वो आज भी सफ़ेद और काला है।
इस घर के आँगन में तुलसी की टहनियाँ बची हैं,
पूजा और पानी दिखे एक ज़माना हो गया होगा।
प्रशाद में मिश्री का, चिटियाँ इंतज़ार नहीं करती
शायद यही इनके सूखने का बहाना हो गया होगा
घर के बाहर की रसोई आज भी वैसी है,
बस ताम्बे के बर्तन काले से पड़ गए है।
चूल्हे में पड़ी लकड़ी सालों से जली नहीं,
बारिश खा के यह दरवाज़े भी सड़ गए है।
पड़ोसी मुझे देख कर थोड़ा मुस्कुरा देते हैं,
हाल चाल पूछने से अब भी कतराते होंगे।
दरवाज़े से निकलती उस गली के अंत में
पीपल के पुराने पेड़ अब भी डराते होंगे।
एक बूढ़े फ़क़ीर की हथेली है यह गली,
अपनी ग़रीब सी मुट्ठी से एक उम्मीद खींचे।
आसमान भी दिखता नहीं है उस गली से
टूटे हुए छज्जों से रोशनी आ जाती है नीचे।
इस दरवाज़े को फिर से ताला लगा देता हूँ,
कई क़िस्से अपना सर बाहर ला रहे हैं।
हर बार घर से निकलते ही टोक देता है
क्या आप फिर वापस शहर जा रहे है?
जवाब देने से डर लगता है दरवाज़े को,
बस हर बार वो यही एक बात बोलता है।
घर का रूठा बेटा आ गया हो वापस,
कुछ इस तरह अपनी बाँहें खोलता है।
बोला हर मौसम लगाते हैं थपेड़े घर को
पर तेरे बाप का बनाया ये घर नहीं टूटा
बूढ़ा हु , और दरारें पड़ गयीं हैं मुझमें
मेरे हाथ से तेरे घर का पर्दा नहीं छूटा ।
समय निकाल कर मरम्मत करा देना मेरी
पुरानी यादों से ख़ुद को फिर सिल पाउँगा
इस घर को बांधे रखूँगा हमेशा की तरह
तेरे साथ अपने भी बचपन से मिल पाउँगा ।
तेरे साथ अपने भी बचपन से मिल पाउँगा ।
heart touching lines
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DeleteNice lines..👌
ReplyDeleteWaah Maaza aa gaya
ReplyDeleteBahot sundar
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ReplyDeleteAaj bhi us darvaze par adhure Arman latakte rahete hai Suraj ki roshni padtehi aankh kholke kahete hai
ReplyDeleteUmar bit gayi saas liye ab to havao ko aazad karunga isiliye
Jab tum Milne aaoge me apne bachpan se mil paunga
apne bachpan se mil paunga..
*Nice thought it's truly heart touching.
Regard
Rupesh Soni
Chandigarh
Great lines
ReplyDeletenice lines 👌👌👌👌
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteHeart touching lines.
ReplyDeleteBahut badhiya hai
ReplyDeletePaaji chhaa gye.bahut wadiya.
ReplyDeletebhut khoob
ReplyDeleteNice...
ReplyDeleteFelt each word and lived them. Too good and too Earthy. Keep writing.
ReplyDeleteSuch Good Lines
ReplyDeleteThe poem resonates and it's very touching.
Keep writing more so that we have good content to read. :-*