देश की राजधानी में एक बहुत बड़े पत्रकार हैं, जो स्वयं को पत्रकारिता का स्वघोषित मानदंड मानते हैं जबकि उनके 'भक्तों' के दृष्टिकोण में वह वर्तमान समय में पत्रकारिता का प्रमाणपत्र बांटने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था हैं। कल रात यूट्यूब पर उन्हीं का एक पुराना 'प्राइम टाईम' चलचित्र देखते हुए अचानक मुझे एक पुराने कार्टून शो का स्मरण आया। शो जिसका नाम था 'Road Runner' और जिसका प्रसारण किसी समय में Cartoon Network पर हुआ करता था। मेरा विचार है की हममें से जो 90 के दशक के निर्मित मॉडल हैं, उनमें से कुछ लोग इस कार्यक्रम से ज़रुर परिचित होंगे। और जिन्हें स्मरण करने में कठिनाई हो रही है, उनके लिए यह पहेली इस यूट्यूब लिंक के माध्यम से थोड़ा सरल किए देते हैं - 👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
पता नहीं क्यों अब जब भी इस Road Runner का उल्लेख भी होता है, तब-तब वह पत्रकार महोदय याद आते हैं। इस शो में Road Runner के पीछे दौड़ता हुआ Coyote मुझे निरंतर उन्हीं पत्रकार महोदय की झलक दिखती है। Coyote की भांति ही वह पत्रकार महोदय भी 2014 के बाद से निरंतर राष्ट्र के पोलिटिकल नैरेटिव रुपी Road Runner के पीछे भागे जा रहे हैं ताकि उसे अपने अधीन कर सकें। परंतु दुर्भाग्य से हर बार नैरेटिव उनकी पकड़ में आते-आते छिटक जाता है। पत्रकार महोदय अपना उद्देश्य सिद्ध करने के क्रम में कभी तो बागों में बहार लाने का असफल प्रयास करते हैं तो कभी माहौल में डर का रसायन ठीक उसी प्रकार घोलने लगते हैंं, जिस प्रकार Road Runner को ठिकाने लगाने के लिए Coyote सुतली बम से लगाए तोप और हवाईजहाज तक प्रयोग में लाता है। और कभी-कभी तो दोनों ही अपने लक्ष्य के पीछे भागते हुए इतनी दूर निकल जाते हैं की उन्हें इस बात का भान तक नहीं होता की उनके पैरों के नीचे की धरती समाप्त हो चुकी है।
पर अंततोगत्वा दोनों के हाथ लगती निराशा ही है और उसकी वजह है दोनों के लक्ष्यों के बीच उपस्थित एक अदृश्य बाधा। जहाँ एक ओर Coyote और उसके Road Runner के बीच हर बार Coyote का फूटा भाग्य हर बार सीना ताने खड़ा हो जाता है वहीं दूसरी ओर पत्रकार महोदय और उनके लक्षय के बीच हर बार सौत की भूमिका निभाता है सोशल मीडिया। वहीं स्थान जहाँ वह लगभग प्रतिदिन 2-2 बीघा लंबे पोस्ट लिखते हैं और जहाँ से वह अपने 'प्राइम टाईम' के लिए कच्चा माल उठाते हैं। फिर वहीं से अपना प्रपंच पकड़ने वालों के विरुद्ध आईटी सेल वाला फतवा प्रेषित करते हैं और अपने विरोधी विचार वाले पत्रकारों के Certificate of Journalism के निष्कासन की मुनादी करते हैं। लेकिन फिर मुझे कहीं लगता है की वह गलत कहाँ हैं? आखिर सोशल मीडिया होता कौन है उनसे प्रश्न करने वाला? भले ही वह आलू को भालू बताते रहें या कटाक्ष की फैक्ट चेकिंग करने वालों को फैक्ट चेकर बताते रहें। क्योंकि ऐसा करना उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार जो है।
अब इससे पहले की यह पोस्ट कहीं से गिरते-पड़ते उनकी नज़र में आए और वह इस बात का विलाप करना शुरु करें की Coyote से तुलना करके उनको निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें फलाँ- ढिमका कहकर प्रताड़ित किया जा रहा है , यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की यह पोस्ट पूर्णतः कटाक्ष के उद्देश्य से लिखी गई है। वहीं कटाक्ष, जिसका अर्थ वह आजकल भूले हुए जान पड़ते हैं। क्योंकि आजकल उनसे थोडा चुहल या प्रश्न करना अपराध की श्रेणी में आ चुका है, जिसका पुरस्कार आपको भक्त, संघी या आईटी सेल की उपमा के स्वरूप में मिलता है। हाँ, मगर महोदय से मेरा नम्र निवेदन है की वह कृपया लोगोंं को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देने वालों और एक विशेष नेता को तानाशाह कहकर उनकी आलोचना में लेश मात्र भी कोताही ना करें। अंत में अपनी बात की समाप्ति इस आश्वासन के साथ करना चाहूँगा की उन पत्रकार महोदय के लिए मेरे मन में कोई घृणा का भाव नहीं है क्योंकि वह घृणा के नहीं बल्कि हास्य के पात्र हैं। इसके लिए उनके स्वयं के कर्म साधुवाद के पात्र हैं। अतः यह लेख लिखकर मैं भी अपना मनोरंजन कर रहा हूँ।
धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
Baago mein bahar hai😂😂😂🙌🙌🙌
ReplyDeleteबागों में बहार है
ReplyDeleteBago me bahar h 😂
ReplyDeleteNo Raja ji got harmed in this post 😂😂
ReplyDelete😊
ReplyDeleteThe only thing that was clinging at the back of my mind while reading this blog was, "Namaskar main Raja Rabbish Kumar"
ReplyDeleteNevertheless, Hail Baaghon mein bahar hai ✌✌✌🤣🤣🤣🤣